छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना है, खरना के दिन छठी मैया की पूजा की जाती है। इस दिन व्रतधारी बच्चे सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति के लिए पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को पूजा स्थल पर दीपक जलाते हैं। फिर भक्त भक्तिभाव से सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं। शाम को भक्त और उनके परिवार के सदस्य मिलकर सारा प्रसाद भगवान को अर्पित करते हैं। फिर इस प्रसाद को परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर खाते हैं। खरना छठ पूजा का अहम हिस्सा है. यह दिन आस्था, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। आइए जानते हैं इसे कैसे मनाया जाता है।
बुधवार यानी 6 नवंबर को छठ पूजा का दूसरा दिन है। इसे खरना कहा जाता है. खरना पूजा छठ का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। क्योंकि इस दिन से व्रती अपना 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू कर देता है। यह भी माना जाता है कि खरना के दिन छठी मैया का भी आगमन होता है।
खरना के दिन चावल, दूध, गुड़ की खीर और मीठी रोटी बनाई जाती है। इसके बाद शाम को शुभ मुहूर्त में व्रती खरना करते हैं। खरना का अर्थ है तैयार प्रसाद को पहले छठी मैया को अर्पित करना और फिर उसे ग्रहण करना।
पंचांग के अनुसार खरना कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि यानी 6 नवंबर 2024 को है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के मुताबिक इस दिन शुभ शिववास योग बन रहा है, जो रात 12:41 तक रहेगा।
मान्यता है कि शिववास योग के दौरान भगवान शिव कैलाश पर निवास करते हैं और इस समय की गई पूजा का फल दोगुना मिलता है। इसके साथ ही खरना के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का भी संयोग रहेगा।
ज्योतिष शास्त्र में शिववास योग और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र दोनों ही शुभ माने गए हैं। साथ ही इस दिन बव और बालव करण का संयोग भी रहेगा। खरना के दिन सौभाग्य पंचमी का त्योहार भी मनाया जाएगा। इन दुर्लभ योगों में खरना पूजा करना बेहद शुभ रहेगा।
खरना को छठ व्रत का दूसरा संयम कहा जाता है, क्योंकि इस दिन से छठ से जुड़े सभी नियमों का सख्ती से पालन करना जरूरी होता है। खरना के बाद व्रती को जमीन पर सोना चाहिए और पूर्ण निर्जला व्रत का संकल्प लेना चाहिए।