पिछले हफ्ते, उतर प्रदेश सरकार ने उद्योग को सुविधाजनक बनाने के लिए कुछ श्रम कुछ श्रम कानूनों को निलंबित करने की घोषणा की, जो की महामारी के कारण व्यावहारिक रूप से एक ठहराव मे आ गए हैँ. मध्य प्रदेश और गुजरात ने भी इस विकल्प को अपनाना सही समझा.1991 के सुधार - भारत के स्वंतत्रता के बाद समस्या यह थी की उनका ध्यान मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था के मांग पक्ष पर केंद्रित थी. GOI ने उत्पादन और उसकी मात्रा पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा. पर इन्होने लेकिन उत्पादन की प्रक्रिया मे जाने वाली लगभग सभी चीज़ो पर नियंत्रण बनाये रखा.GOI ने भूमि, श्रम और भौतिक संसाधनों पर प्रमुख नियंत्रण का प्रयोग किया. भारत के श्रम क़ानून जिसमे विभिन्न विधियों मे परस्पर विरोधी प्रावधानों के साथ 150 से विधान शामिल हैँ, इसकी सरासर जटिलता और पुरातन दायित्व अपरिहार्य थे. पूर्ण अनुपालन वस्तुतः असंभव था. किसी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्था के पास इस तरह का कानूनी शासन नहीं था, सभी कार्यबल के कमज़ोर वर्गों की रक्षा के नाम पर. इन्ही कानून ने भारत को विनिर्माण मे पीछे रखा.
परिस्थितीयों ने भारत को एक और मौका दिया है, जहाँ वह इस महामारी के कारण चीन से आने वाली कंपनीयों की उड़ान पर पूंजी लगा सकता है. हालांकि प्रतिबंधात्मक श्रम कानूनों की निरंतर उपस्थिति भारत दक्षिणपूर्व एशियाई अर्थव्यवस्था की तुलना मे पीछे करता है. हालांकि यह नवीनतम सुधार भारत की मौजूदा राजनितिक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. भारत को covid -19 से पहले भी अर्थव्यवस्था मे कमी का सामना करना पड़ रहा था जबकि जुड़वा बैलेंस शीट समस्या लगातार बनी रही. इसने एक प्रमुख तरीके से अपने आपको उबरने के लिए मजबूर किया और वृद्धि घट गयी. यहां तक की जब भारत इस संरचनात्मक गड़बड़ी से बाहर निकल रहा था, तो उसे मौजूदा महामारी का झटका मिला जिसने स्थिति को और बिगाड़ दिया. ऐसे मे बाजार मे मांग को आगे बढ़ाने के लिए भारत सरकार के पास एक बड़ा विकल्प है. यह ख़र्च कई तरीकों से किया जा सकता है, और नीतिगत विकल्पों मे सुझाव दिया गया है की एक विशाल प्रोत्साहन पैकेज से लेकर ' हेलीकाप्टर मनी ' तक का उपयोग किया जा सकता है - नये पैसो की बड़ी रकम को प्रिंट करना और इसे जनता के बीच वितरित करना. लेकिन सचाई यह है की भारत के पास उस तरह के राजकोशी विरासत नहीं है, विशेषकर कर प्राप्तियों मे अपेक्षित गिरावट के प्रकाश मे.
घाटे का मुद्रीकरण करने का कोई भी प्रयास जोखिम भरा पस्ताव है क्यूंकि भारत की क्रेडिट रेटिंग कबाड़ से सिर्फ एक पायदान ऊपर है. इसपर कहर बरपा सकते हैँ क्यूंकि निवेशक आत्मविश्वास खो सकते हैँ, अर्थव्यवस्था को तेज़ी से पटक सकते हैँ, हॉब्सन की इस पसंद का सामना करते हुए, GOI के पास बहुत कम विकल्प है, लेकिन आवश्यक घाटे के लिए कमरे बनाने के लिए अपने घाटे को बढ़ने दें, और एक ही समय मे निवेशकों और रेटिंग एजेंसी को आश्वस्त करीम की यह सिर्फ एक बार का मामला है, यह इस सन्दर्भ मे है की उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश और गुजरात मे श्रम क़ानून सुधार की घोषणा महत्वपूर्ण है.
श्रम क़ानून सुधार ना तो सिर्फ भारत को वैश्विक विनिर्माण के एक संभाविक गंतव्य बनने के लिए एक लड़ाई का मौका देते हैं बल्कि वह संकट के इन समय मे राजकोषीय प्रमुखों के माध्यम से पाल करने के लिए एक मस्तूल के साथ भारत सरकार को प्रदान करते हैँ. इसीलिए यह महत्वपूर्ण है की अन्य राज्य भी इसका पालन करें ताकि भारत से बाहर जाने वाला सन्देश राजनीतिक दलों को अनुरूप हो और इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाये.