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Makar Sankranti 2025: 14 जनवरी को है मकर संक्रांति... त्रेता युग से आज तक, क्यों है यह भारतीय संस्कृति में खास? जानें स्नान-दान का शुभ मुहूर्त

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही मनाई जाती है मकर संक्रांति, एक पर्व... अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व।

Ravi Rohan
  • Jan 13 2025 11:04AM

मकर संक्रांति का पर्व हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ मनाया जाता है। यह दिन खासकर स्नान, दान और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, इस दिन गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।

अगर नदियों में स्नान करना संभव न हो, तो घर पर गंगा जल मिलाकर स्नान करने से भी वही पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन विशेष रूप से उड़द की दाल, चावल, तिल, चिड़वा, सोना, ऊनी वस्त्र, कंबल आदि दान किए जाते हैं। यह माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन इन कार्यों से व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि का वास होता है। 

मकर संक्रांति 2025 की तिथि और तैयारी  

इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। विभिन्न घरों में इस दिन के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। जहां गृहिणियां दही, तिलपट्टी, गुड़ की लाई आदि तैयार कर रही हैं, वहीं बाजारों में भी इस पर्व से जुड़ी चीजों की खरीदारी जोरों पर है। पटना के बाजारों में तिलकुट, लाई, बादाम पट्टी, दही-चूड़ा और गुड़ जैसी मिठाइयां बिक रही हैं, जो स्थानीय दुकानों से लेकर गली-मोहल्लों तक उपलब्ध हैं। तिलकुट की खुशबू और चूड़ा-दही की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ इस पर्व के खास उत्साह को दर्शाती है।

भौम-पुष्य योग का दुर्लभ संयोग

ज्योतिषाचार्य राकेश झा के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन 19 साल बाद एक दुर्लभ भौम-पुष्य योग का निर्माण हो रहा है। यह योग सुबह 10:41 बजे से पूरे दिन रहेगा। पुष्य नक्षत्र का यह संयोग विकास, धन और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

मकर संक्रांति का पुण्यकाल और मुहूर्त 

मकर संक्रांति का पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 9:03 बजे से शुरू होगा और शाम 5:46 बजे तक रहेगा। विशेष महापुण्यकाल सुबह 9:03 बजे से लेकर 10:04 बजे तक रहेगा। इसके अलावा, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:27 बजे से 6:21 बजे तक और अमृत काल 7:55 बजे से 9:29 बजे तक रहेगा। इस दिन स्नान और दान के लिए पूरा दिन अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।

पतंग उड़ाने की परंपरा

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की एक पुरानी परंपरा है, जो त्रेता युग से जुड़ी हुई है। तमिल साहित्य के तन्दनान रामायण में भी इस परंपरा का उल्लेख मिलता है, और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के बालकांड में भी इसका संदर्भ मिलता है। पतंग उड़ाना इस दिन को खास बनाता है, और यह एक खुशी और उत्सव का प्रतीक बन चुका है। 

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