भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में शिवसेना द्वारा किए गए आरोपों का जवाब दिया, जिसमें उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विधायकों की अयोग्यता पर लंबित याचिकाओं पर निर्णय न देकर राजनीतिक दलबदल की स्थिति को बढ़ावा दिया, जिससे एमवीए को चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
संजय राउत का आरोप
संजय राउत ने विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि CJI चंद्रचूड़ के निर्णय न लेने के कारण राज्य में विधायकों की अयोग्यता पर कोई स्पष्टता नहीं बनी। राउत ने कहा कि न्यायिक निष्क्रियता के कारण राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी और यह एमवीए की हार का कारण बना। 20 नवंबर को हुए विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) के नेतृत्व वाले एमवीए गठबंधन को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, जहां उसे 94 सीटों में से केवल 20 सीटें मिलीं।
CJI का सख्त जवाब
CJI चंद्रचूड़ ने इस आरोप का जवाब देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में इस साल कई महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों की सुनवाई की गई है। उन्होंने कहा, "क्या किसी एक पक्ष या व्यक्ति को यह तय करने का अधिकार है कि सर्वोच्च न्यायालय को किस मामले की सुनवाई करनी चाहिए?" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायालय के पास सीमित संसाधन और न्यायाधीश हैं, जिससे सभी मामलों को समान रूप से प्राथमिकता दी जाती है।
शिंदे-ठाकरे विवाद और SC का रुख
वर्ष 2022 में शिवसेना में हुए विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार बनी। इसके बाद, ठाकरे गुट ने शिंदे गुट के खिलाफ विधायकों की अयोग्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को इस पर निर्णय लेने का आदेश दिया, जिसके बाद शिंदे गुट को "असली" शिवसेना घोषित किया गया।
अदालत का कार्यभार और सीमित संसाधन
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कई मामले पिछले 20 वर्षों से लंबित हैं, और अदालत को उपलब्ध न्यायधीशों की संख्या के कारण इन मामलों को संतुलित रूप से सुनवाई करनी पड़ती है। उन्होंने यह भी बताया कि न्यायिक प्रक्रिया में समय की कमी के बावजूद, अदालत ने कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसले दिए हैं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर
पूर्व CJI ने यह भी कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें यह मानती हैं कि यदि अदालत उनके एजेंडे का पालन करती है, तो वह स्वतंत्र होती है। उन्होंने इसे अस्वीकार्य बताया और कहा कि न्यायपालिका का उद्देश्य किसी एक विशेष एजेंडे का पालन करना नहीं है, बल्कि संवैधानिक मामलों पर निष्पक्ष निर्णय देना है।
महत्त्वपूर्ण फैसले और कार्यकाल की उपलब्धियाँ
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया, जैसे कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले में निर्णय, विकलांगता अधिकारों पर विचार, और नागरिकता कानून पर निर्णय। उन्होंने यह भी कहा कि इन फैसलों का समाज के विभिन्न वर्गों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है और ये मामले किसी भी राजनीतिक एजेंडे से अधिक महत्वपूर्ण थे।
इस प्रकार, CJI ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का काम किसी बाहरी दबाव या निर्देश पर नहीं, बल्कि संविधान और कानून के तहत निष्पक्ष रूप से फैसले लेना होता है।