आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारें में नहीं बताया होगा, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने के साथ ही सदा के लिए मिटाने की कोशिश की ,, उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे क्रांतिवीर कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकार अगर कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी का सच दिखाते तो आज इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. आज क्रांतिवीर कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी का जन्म 25 नवंबर को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था. विद्यार्थी अवस्था में ही इनकी नाट्यप्रतिभा चमक उठी. ये बहुमुखी प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे जो परीक्षा में, खेल में और वक्तृत्व की स्पर्धा में सदा चमकते थे. हाई स्कूल तथा कालेज में पढ़ते हुए इन्होंने संस्कृत तथा अंग्रेजी नाटकों का गहन अध्ययन किया.
खाडिलकर जी मराठी साहित्यकार, नाट्याचार्य, पत्रकार तथा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी के सहयोगी थे. वे काका साहब खाडिलकर के नाम से विशेष प्रसिद्ध थे. एक महान् देशभक्त के रूप में आज भी उनका पर्याप्त सम्मान है. मराठी नाटय-सृष्टि में उन्होंने बहुमूल्य कार्य किया. मराठी नाट्य प्रेमियों ने अत्यंत स्नेह भाव से उन्हें ‘नाट्याचार्य’ की पदवी से विभूषित किया. महाराष्ट्र में आधुनिक पत्रकारिता की नींव उन्हीं ने डाली थी. वे श्रेष्ठ चिंतक तथा वैदिक साहित्य के अभ्यासक थे. वे सादगी, सदाचार और ईमानदारी, देशभक्ति, स्वाभिमान व नेकी आदि गुणों की प्रत्यक्ष मूर्ति ही थे.
वकील होने पर स्वदेशसेवा करने की उदात्त भावना से ये लोकमान्य तिलक जी के सहकारी बने थे.खाडिलकर जी स्वभाव में लालित्य और गांभीर्य का अलौकिक मेल था. लोकजागरण के उदात्त उद्देश्य से ये नाट्यसर्जना करने लगे. इन्होंने शेक्सपियर की नाट्यशैली को अपनाकर करीब 15 कलापूर्ण एवं प्रभावशाली नाटकों की सफल रचना की. इन्होंने कलापूर्ण गद्यनाटक के समान ही संगीतनाटक भी लिखे और गद्यनाटकों को संगीतनाटक जैसा कलापूर्ण बनाया.
1893 में इनका 'सवाई माधवराव की मृत्यु' नामक गद्य एवं दुखांत नाटक अभिनीत हुआ जिसने दर्शकों को विशेष आकर्षित किया. इसके उपरांत 'कीचकवध और 'भाऊ बंदकी' जैसे गद्यनाटकों ने इनकी लोकप्रियता को चार चांद लगाए. खाडिलकर जी कीचकवध नाटक सामयिक राजनीतिक परिस्थितियों पर लिखा व्यंग्य करने में इतना सफल रहा कि अंग्रेज सरकार को उसे जब्त करना पड़ा. पौराणिक नाट्यवस्तु द्वारा सामयिक राजनीति की मार्मिक आलोचना करने में ये बड़े सफल थे. इसी प्रकार भाऊ बंदकी नामक ऐतिहासिक नाटक लिखने में भी ये खूब सफल रहे. 1912 से इन्होंने संगीतनाटक लिखने प्रारंभ किए और 1936 तक इस प्रकार के सात नाटक लिखे. जिनमें 'संगीत मानापमान', 'संगीत स्वयंवर', 'संगीत द्रौपदी' उत्कृष्ट नाटक है.
नाट्यवस्तु के विन्यास, चरित्रचित्रण, प्रभावकारी कथोकथन, रसों के निर्वाह, सभी दृष्टियों से खाडिलकर के नाटक कलापूर्ण हैं.कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी नाट्यसृष्टि शृंगार, वीर, करुणादि रसों से ओतप्रोत है. इनकी नाट्य रचना से नाट्यसाहित्य और रंगमंच का यथेष्ट उत्कर्ष हुआ. कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी रचना को स्रोत आदर्शवाद था जो इनके जीवन में प्राय: उमड़ पड़ता था इन्होंने स्पष्ट कहा है कि राष्ट्रोन्नति में सहायक हो, ऐसा लोकजागरण करना या लोकशिक्षा देना मेरी नाट्यकला का प्रधान उद्देश्य है. नाटक कार को चाहिए कि वह आदर्श चरित्रचित्रण दर्शकों के सामने प्रस्तुत करे ताकि वे उनसे प्रभावित होकर कर्मयोग का आचरण करें.
कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर जी प्रखर राष्ट्रभक्त और तेजस्वी संपादक भी थे जिन्होंने बंबई में नवाकाल नामक दैनिक पत्र को करीब 16 साल तक सफलता से संपादित किया. ये मराठी के 'शेक्सपियर' कहलाते हैं. आयु के अंतिम दिनों में इन्होंने अध्यात्म पर भी गंभीर ग्रंथ लिखे. आज जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.