हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र माना गया है। शास्त्रों और पुराणों में इसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाने वाली तिथि कहा गया है। वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है, जो इस बार 24 अप्रैल 2025 को मनाई जा रही है। इसे ‘वरुथिनी ग्यारस’ भी कहा जाता है। यह व्रत आत्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
साल में कुल 26 एकादशी आती हैं, लेकिन वरुथिनी एकादशी विशेष फल देने वाली मानी गई है। इस दिन उपवास और पूजा से न सिर्फ पापों का नाश होता है, बल्कि दुख, दरिद्रता और बाधाएं भी दूर होती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी का फल स्वर्णदान, दीर्घकालीन तपस्या और कन्यादान जैसे महादानों से भी अधिक पुण्यदायक होता है।
व्रत की तिथि और पारण का समय
एकादशी तिथि प्रारंभ: 23 अप्रैल 2025, शाम 4:43 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 24 अप्रैल 2025, दोपहर 2:32 बजे
व्रत तिथि (उदया तिथि अनुसार): 24 अप्रैल 2025, गुरुवार
पारण का समय: 25 अप्रैल 2025, शुक्रवार सुबह 5:52 से 8:27 तक
विशेष योग और पूजा का मुहूर्त
इस बार वरुथिनी एकादशी पर ब्रह्म योग, इंद्र योग और लक्ष्मी नारायण योग जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं। इस दिन इन योगों में भगवान विष्णु की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
पूजा मुहूर्त: प्रातः 4:20 बजे से दोपहर 3:56 बजे तक
वरुथिनी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर संकल्प लें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध कर पंचामृत स्नान कराएं। पूजा में चंदन, फूल, तुलसी, धूप, दीप आदि अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम या नारायण कवच का पाठ करें और दीपक जलाकर आरती करें। दिनभर व्रत का पालन करें, शाम को फिर आरती करें और रात्रि जागरण करें। द्वादशी को ब्राह्मण भोज करवाकर व्रत का पारण करें।
वरुथिनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन समय में नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता नामक एक राजा राज्य करता था। वह परम तपस्वी था। एक बार जब वह गहन तपस्या में लीन था, तभी एक जंगली भालू ने उस पर आक्रमण कर उसका पैर चबा लिया। लेकिन राजा विचलित नहीं हुआ और भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। प्रभु प्रकट हुए और भालू का अंत कर दिया।
हालांकि, भालू द्वारा खाए गए पैर के कारण राजा अत्यंत दुखी था। तब भगवान विष्णु ने उसे वरुथिनी एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने वराह अवतार की पूजा के साथ इस व्रत को श्रद्धा से किया। व्रत के प्रभाव से न केवल उसे नया अंग मिला, बल्कि मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक की प्राप्ति भी हुई।