'एक देश, एक चुनाव के बिल' को मोदी सरकार ने गुरुवार को कैबिनेट बैठक में मंजूरी दे दी है। जानकारी के अनुसार, अब सरकार इस बिल को सदन में पेश कर सकती है। इस विधेयक को अगले सप्ताह इसी शीतकालीन सत्र में लाए जाने की संभावना है। इस विधेयक को पाश कराने के लिए केंद्र सरकार इस पर तेजी से काम कर रही है।
सबसे पहले जेपीसी कमेटी बनाकर सभी दलों से सुझाव लिये जायेंगे. आख़िरकार यह बिल संसद में लाया जाएगा और पारित हो जाएगा। इससे पहले रामनाथ कोविंद की समिति ने एक देश, एक चुनाव से जुड़ी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। जानकारी के अनुसार, सरकार इस विधेयक को लंबी चर्चा और आम सहमति बनाने के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की योजना बना रही है। जेपीसी सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत चर्चा करेगी और इस प्रस्ताव पर सामूहिक सहमति की आवश्यकता पर जोर देगी। बता दें कि, अभी देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। इस बिल के कानून बनने के बाद देश में एक साथ चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है।
इससे पहले बुधवार यानी 11 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक राष्ट्र, एक चुनाव के बारे में कहा था कि, बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न कर रहे है। उन्होंने आगे कहा कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है।
'वन नेशन, वन इलेक्शन' की राह में कई अड़चन
वन नेशन, वन इलेक्शन एक प्रस्ताव है जिसके तहत भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की बात कही गई है. बीजेपी के घोषणा पत्र के कुछ अहम लक्ष्यों में ये भी शामिल है। एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का कारण यह है कि इससे चुनाव में होने वाले खर्च को कम किया जा सकेगा। दरअसल, 1951 से 1967 के बीच देश में एक साथ चुनाव होते थे और लोग एक ही समय में केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के लिए वोट करते थे। बाद में देश के कुछ पुराने प्रदेशों के पुनर्निर्माण के साथ-साथ कई नए राज्यों की भी स्थापना की गई। इसके चलते 1968-69 में यह व्यवस्था बंद कर दी गई। पिछले कुछ सालों से इसे दोबारा शुरू करने का विचार चल रहा था।