दिव्य नगरी अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है, रामलाल अपने गर्भगृह में विराजमान हैं. लेकिन इस भव्य और नव्य राम मंदिर के लिए पुरखों ने बहुत बलिदान दिया है.
दिसंबर 1992 को मस्जिदनुमा विवादित ढांचे का विध्वंस करके मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के शानदार मन्दिर के लिए जमीन की सफाई का महान काम शुरू हुआ था. इस घटना को अब भले ही 32 साल पुरे हो गए हों लेकिन जिस भव्य मंदिर का निर्माण आज सम्भव हो सका है वो इसी कलंक के मिटने का परिणाम है. मस्जिदनुमा विवादित ढांचे का विध्वंस होने से भारत की अखंड, अद्वितीय और कालजयी सनातन संस्कृति पर से इस्लामिक मुगलिया गुलामी का कलंक धुला था.
आपको बता दें कि 1885 से ही यह मामला अदालत में था और 1990 के दशक में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा और सभी हिंदुस्थानी एक स्वर में कलंक मस्जिदनुमा विवादित ढांचे को मिटाने के लिए आक्रोशित हो रहे थे. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने कलंक के प्रतीक विवादित ढांचे को तोड़ दिया. हिंदुओं को बदनाम करने के लिए इस मामले में आडवाणी, जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था जो बाद में निराधार और झूठा साबित हुआ.
बाबरी मस्जिद के पूर्व में लगभग 200 मीटर दूर रामकथा कुंज में एक बड़ा स्टेज लगाया गया था. यहां वरिष्ठ नेता, साधू-संतों के लिए मंच तैयार किया गया था. विवादित ढांचे के ठीक सामने इस मंच को तैयार किया गया था, जहां पर एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, उमा भारती, कलराज मिश्रा, अशोक सिंहल, रामचंद्र परमहंस मौजूद थे.
सुबह 9 बजे का समय था, पूजा-पाठ हो रही थी. भजन-कीर्तन चल रहे थे. डीएम-एसपी सब वहीं थे. करीब 12 बजे फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने ‘बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर’ का दौरा भी किया. लेकिन वो आने वाले तूफान को भांपने में विफल रहे और कुछ ही देर में माहौल पूरी तरह बदल गया.
विहिप की तैयारी मंदिर परिसर में सिर्फ साफ-सफाई और पूजा-पाठ की थी. लेकिन, कारसेवक इससे सहमत नहीं थे. तभी अचानक कारसेवकों का एक बड़ा हूजूम नारों की गूंज के बीच विवादित स्थल पर घुसा. इसके बाद भीड़ बाबरी के ढांचे पर चढ़ गई. अब गुंबदों के चारो ओर लोग पहुंच चुके थे. उनके हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा जैसी चीजें थीं, जिसकी मदद से वो ढांचे को गिराने वाले थे.
हालांकि, कुदाल-फावड़े के साथ आगे बढ़ रही भीड़ को रोकने की काफी कोशिश की गई, इस दौरान संघ के लोगों के साथ उनकी छीना-झपटी भी हुई. लेकिन, भीड़ कहां रुकने वाली थी. जिसके हाथ में जो मिला लेकर चलता बना और गुंबद को ढहा दिया गया.
दो बजे के करीब पहला गुंबद गिरा. खबरें मिलीं कि पहले गुंबद के नीचे कुछ लोग दब गए हैं. इसके बाद चार से पांच बजे तक सभी गुंबद गिरा दिए गए थे. इस दौरान सीआरपीएफ ने कारसेवकों को रोकने की कोशिश की लेकिन उन पर पत्थर बरसने शुरू हो गए, जिसके बाद उन्हें पीछे हटना पड़ा. तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी यह हुआ और राज्य की कल्याण सिंह सरकार देखती रही.
दरअसल, कोर्ट ने आदेश जारी किया था कि विवादित स्थल पर कोई निर्माण कार्य नहीं होगा और सूबे के मुखिया कल्याण सिंह ने भी सर्वोच्च न्यायालय को इस बात का भरोसा दिया था कि कोर्ट के आदेशों का पालन किया जाएगा. लेकिन कारसेवकों के आगे सबकुछ विफल साबित हुआ.