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8 दिसंबर : 2002 में आज ही गौमूत्र को स्वास्थ्य के लिए अमृत बताते हुए अमेरिका ने करवा लिया था पेटेंट...जबकि भारत मे आज भी गौ रक्षकों को घोषित किया जा रहा हत्यारा

इसको बुद्धिहीनता माना जाय,विडंबना कही जाय या विदेशी शक्तियों की कोई सोची समझी साजिश

Sumant Kashyap
  • Dec 8 2024 8:35AM

इसको बुद्धिहीनता माना जाय,विडंबना कही जाय या विदेशी शक्तियों की कोई सोची समझी साजिश. गौ माता की रक्षा के मुद्दे को जहां तथाकथित आधुनिकता की धारा में बह रहे लोग पिछड़ी सोच वाले उन्मादी बता रहे हैं तो तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड सवाल करती है कि क्या गौ माता इंसानों से ऊपर हो गई है. वामपंथी विचारधारा के लोग जो बाबरी में पूर्ण आस्था रखते हैं पर श्रीरामजन्मभूमि के नाम से बिदकते हैं उनके लिए तो गौ रक्षा किसी आतंकवाद से कम नही है.

इतना ही नही, देश के पर सबसे ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने तो गौ सेवा के साथ मॉब लिंचिंग जैसे शब्द भी जोड़ डाले जिसमें पीड़ित केवल एक पक्ष और पीड़ा देने वाला एक वर्ग घोषित किया गया है. भारत के एक तथाकथित शांतिप्रिय समूह के वोट के लिए ये सब कुछ चलता रहा और अगर हिंदू समाज पर सबसे ज्यादा आघात किया गया तो वो गाय को सामने रख कर. 

इस गाय की सेवा, रक्षा करने का आदेश हिंदुओं के शास्त्रों में भी है लेकिन उन पावन गर्न्थो को कपोल कल्पित किताबे बता दिया गया. लेकिन ग्रंथ और वैज्ञानिकता बार बार कहती रही कि गाय इंसानों के लिए एकईश्वरीय वरदान के समान है जिसका संरक्षण और संवर्धन जरूरी है एक स्वस्थ समाज के लिए. कुछ प्रदेशो में गाय की रक्षा के लिए कानून भी बने पर उसको लगातार चुनौती मिलती रही गौ हत्यारो की तरफ से. 

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की घटना इसका जीवंत प्रमाण है और बाकी जिलो में जारी गौ तस्करी भी श्रद्धा और संविधान को सीधी चुनौती मानी जा सकती है. सवाल ये है कि इंसान सर्वोपरि होने का क्या ये मतलब है कि वो जिसे चाहे मार कर खा जाए ? क्या धन धान्य से भरी इस श्यामला धरती पर कुछ लोग बिना गौ मांस खाये रह नही सकते ? 

किस डॉक्टर का वो कौन सा पर्चा है जिसमे गौ मांस जरूरी बताया गया है. यदि किसी नवजात बच्चे की मां नही है या उसको दूध पिलाने में सक्षम नही है तो डॉक्टरों के निर्देश पर उसको गाय का दूध पिला कर पाला जा सकता है. इसीलिए गाय को मां भी कहा जाता है. लेकिन दूध ही नही गौ मूत्र भी इंसानों के लिए अमृत है इसको आज ही के दिन अमेरिका ने 21 साल पहले ही मान लिया था और 2002 में गौ मूत्र को औषधि के रूप में बनाने के लिए बाकायदा पेटेंट भी करवा लिया था. 

भारत मात्र गौ मांस के लोभियों और स्वघोषित सेकुलरों के दबाव में पीछे रह गया था जिन्होंने तथाकथित आधुनिक लोगों के दिमाग मे ये भर दिया था कि गौ रक्षा पुरानी विचारधारा के उन्मादी लोगों का कार्य है. अमेरिका ने 2 दिसंबर 2002 को जिस गौ मूत्र को अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक औषधि मान मात्र 16 साल पहले पहिचान कर कर पेटेंट करवाया था , उसको हिंदुओं के शास्त्र , ग्रन्थ और वेद लाखों वर्ष पहले ही लिख कर गए थे.

रामायण में प्रभु श्रराम के समय से भी पहले गौ रक्षा व गौ सेवा का आदेश वेदों में सनातनियो को मिला है पर वो भारत मे विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित वर्ग के कहने में आ गए और गंवा बैठे अपने ही पुरखों द्वारा मिली हुई अनमोल धरोहर को.. भारत की पारंपरिक जैव संपदा नीम, हल्दी और जामुन के बाद अब गोमूत्र को भी अमरीकी वैज्ञानिकों ने शक्तिवर्धक दवा के स्रोत के रूप में आज ही के दिन अर्थात 2002 को पेटेंट कर लिया था. ऐसे ही नही वो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बना जो ओलंपिक आदि में सबसे ज्यादा पदक प्राप्त करता है. 

भारत की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार तब वामपंथी सोच व तब विपक्ष से तालमेल बनाती ही रह गई लेकिन उतनी देर में अपना नफा नुकसान समझते हुए अमेरिका ने इसे पेंटेट कर लिया. वैदिक काल अर्थात प्राचीन समय से ही गोमूत्र को पंच गव्य का हिस्सा माना जाता रहा है और इसका इस्तेमाल शक्तिवर्धक औषधियों के निर्माण में किया जाता था.

पंचगव्य में गाय का दूध .दही .घी.गोबर के साथ गोमूत्र को भी शामिल किया गया है. अमरीका द्वारा इसे पेटेंट किए जाने से यह बात अब पूरी तरह प्रमाणिक हो चुकी है कि इसमें मनुष्य को दीर्घायु बनाने वाले तत्व मौजूद हैं. गोमूत्र के पहले नीम हल्दी और जामुन को अमरीका मे पेटेंट किए जाने को लेकर देश में तब हिंदूवादी समूहों ने विरोध दर्ज करवाया था क्योंकि गाय के समान हिंदू नीम को भी देव मान कर उसको जल आदि चढ़ाते थे.

लेकिन उन्हें पुरानी सोच वाला बताया गया और आखिरकार गाय के साथ नीम भी अमेरिका ने पेटेंट करवा कर वामपंथी सोच व गौ हत्यारो की विचारधारा वालों के मंसूबे सफल कर दिए थे. इसमें कोई आश्चर्य नही की कल कोई ये कुतर्क दे कि क्या हवा इंसानों से बढ़ कर है, इसलिए हवा बंद करो, क्या पानी इंसानों से बढ़ कर है, इसलिए पानी बंद करो..

ये वही कुतर्क हैं जिनके चलते गाय भारत की धरोहर होते हुए भी भारत के हाथों से निकल कर अमेरिका के पास चली गई. भारत मे तो एक शासन में गौ रक्षा की मांग करने वाले संतो पर गोलियां बरसा दी गई थीं जिसके लिए आज तक किसी ने न्याय की या सज़ा की मांग नही की थी. 

आज उस दिवस अर्थात 8 दिसंबर को इतिहास द्वारा नीम और गाय के महत्व को याद दिलाते हुए सभी गौ रक्षको व गौ सेवकों को सुदर्शन परिवार साधुवाद देता है जिनके संघर्षों के चलते अभी भी थोड़े बहुत गौ वंश बचे हुए हैं और देश मे एक छोटा सा ही सही पर एक वर्ग गाय, नीम आदि को देवतुल्य मान कर बचाये हुए है.

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