महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में एक बार होता है। इस बार महाकुंभ की शुरुआत संगम नगरी प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 को हुई है और यह 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ के दौरान 13 अखाड़े अपने शिविर लगाते हैं, जिनमें साधु-संत और नागा साधु शामिल होते हैं। श्रद्धालु और साधु-संत त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं। महाकुंभ का शाही स्नान या अमृत स्नान प्रमुख आकर्षण का केंद्र होता है।
अमृत स्नान का विशेष महत्व
महाकुंभ में साधु-संतों के लिए अमृत स्नान का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सबसे पहले 13 अखाड़ों के साधु-संत, आचार्य, महांडलेश्वर, नागा साधु, अघोरी और महिला नागा साधु स्नान करते हैं। इसके बाद आम भक्त इस पवित्र संगम में डुबकी लगाते हैं। महाकुंभ के दौरान होने वाला शाही स्नान ही अमृत स्नान कहलाता है। इस वर्ष मकर संक्रांति के बाद मौनी अमावस्या के दिन अमृत स्नान होगा।
अमृत स्नान का धार्मिक महत्व
सनातन धर्म में अमृत स्नान का अत्यधिक महत्व है। यह स्नान पुण्य प्राप्ति और पवित्रता का एक साधन माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से यह विश्वास है कि अमृत स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मन की अशुद्धियां दूर होती हैं। इसको लेकर मीडिया को अग्नि अखाड़े के महंत आदित्तानंद शास्त्री ने बताया कि, अमृत स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने जैसा पुण्य फल मिलता है। इस स्नान के बाद साधु-संत देवताओं का ध्यान लगाते हैं और ज्ञान पर चर्चा करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शुद्धि और शांति मिलती है।
नागा साधु क्यों करते हैं सबसे पहले अमृत स्नान
कुंभ में नागा साधुओं का स्नान धर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जब आदि शंकराचार्य ने धर्म रक्षा के लिए नागा साधुओं की टोली बनाई, तो अन्य संतों ने उन्हें पहले स्नान करने के लिए आमंत्रित किया। नागा साधु भोले बाबा के अनुयायी होते हैं, और उन्हें पहला स्नान का अवसर दिया जाता है। यह परंपरा आज भी कायम है।