कोई लाख भले ही बिना खड्ग बिना ढाल के गाने गा ले और कोई कितना भी आज़ादी की ठेकेदारी सड़क से संसद तक ले लेकिन जाएं. इन ठेकेदारों की चीख और नकली दस्तावेज किसी भी हालत में उन वीर क्रांतिकारी के बलिदान को नहीं मिटा सकते है जो भारत माता के लिए अपनी जान तक देने को तैयार थे. उन्होंने भारत माता को अपना सब कुछ दे दिया और बदले में कुछ नहीं मांगा.
इनका ये बलिदान बिना किसी स्वार्थ और भविष्य की योजना अदि के था. इनके नाम कहीं से भी कोई दोष नहीं है. इन्होंने हमेशा ही भारत माता को अंग्रेजों की जंजीरों से मुक्त करवाने का सपना देखा था, जिसके लिए इन्होंने उन अंग्रेजों को सीधी चुनौती दी जिनके दरबार में अक्सर आज़ादी के कुछ ठेकेदार हाजिरी लगाते दिखते थे. आज उन लाखों सशस्त्र क्रांतिवीरों में से एक क्रांतिकारी सोहन सिंह भकना जी की पुण्यतिथि है. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनकी पुण्यतिथि पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.
सोहन सिंह भकना जी का जन्म 22 जनवरी 1870 को उनकी मां के पैतृक घर, अमृतसर के खुटराई खुर्द गांव में हुआ था. उनका जन्म एक शेरगिल जाट परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम भाई करम सिंह और मां का नाम रानी कौर था. सोहन सिंह भकना जी मात्र एक वर्ष के जब इनके पिता का देहान्त हो गया था. जिसके बाद उनकी मां रानी कौर ने ही उनका पालन-पोषण किया था.
सोहन सिंह भकना जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के गुरुद्वारे में प्राप्त की, जहां उन्हें धार्मिक शिक्षा मिली. कम उम्र में ही उन्होंने पंजाबी भाषा पढ़ना और लिखना सीख लिया था. उन्होंने सिख परंपराओं की मूल बातें भी सिखा ली थी. जब सोहन सिंह भकना जी दस साल के थे तो उनकी शादी बिशन कौर से हुई थी. ग्यारह वर्ष की आयु में उन्होंने प्राइमरी स्कूल में पढ़ना आंरभ किया और 1896 में सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण कर ली.
सोहन सिंह भकना जी 1900 के दशक में पंजाब में उभरे राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल हो गए थे. उन्होंने उपनिवेशवाद विरोधी विधेयक के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था. सन 1907 में वो अमेरिका जा पहुंचे. उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय आदि अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे. इस बात का पता सोहन सिंह भकना जी को भी चल चुका था.
अमेरिका में सोहन सिंह भकना जी को एक मिल में काम मिल गया था. उस मिल में पहले से ही लगभग 200 पंजाब निवासी काम कर रहे थे. इन सभी लोगो को वहां बहुत ही कम वेतन मिलता था, इसके साथ ही उन्हें विदेशियों द्वारा तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था. सोहन सिंह भकना जी समझ गए की की उन लोगों का ये अपमान भारत में अंग्रेजों की गुलामी के कारण हो रहा है और जब तक देश स्वतंत्र नहीं हो जाता उन लोगो का ऐसे ही अपमान होता रहेगा. अतः सोहन सिंह भकना जी ने देश की स्वतन्त्रता के लिए स्वयं के संगठन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया.
बता दें कि उस समय क्रांतिकारी लाला हरदयाल अमेरिका में ही थे. उन्होंने 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई. उसे समय सोहन सिंह भकना जी उसके अधयक्ष और स्वयं मंत्री बने. सभी भारतीय उस संस्था में सम्मिलित होने लगे थे. 1857 में हुए स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में संस्था द्वारा 'गदर' नाम का पत्र प्रकाशित किया गया. इसके बाद 'ऐलाने जंग', 'नया जमाना' का भी प्रकाशन किया गया. इस संस्था का नाम बदलकर 'ग़दर पार्टी' कर दिया गया था.
सोहन सिंह भकना जी ने कुछ समय बाद क्रांतिकारियों को संगाठित करके अस्त्र-शस्त्र के साथ भारत भेजने की योजना को कार्यन्वित करने में आगे बढ़ कर भाग लिया. इसी के चलते भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों को तैयार किया गया. लेकिन देशद्रोहियों ने इन क्रांतिकारियों का भेद दिया. सोहन सिंह भकना जी अन्य साथियों के साथ जहाज से कोलकाता पहुंचे थे. लेकिन 13 अक्टूबर, 1914 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
गिरफ्तारी के बाद उन्हें पूछताछ के लिए लाहौर जेल भेजा गया. इन सभी क्रांतिकारियों पर लाहौर में मुकदमा चलाया गया, जो 'प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस' के नाम से प्रसिद्ध हुआ. बाबा सोहन सिंह भकना जी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जिसके बाद उन्हें अण्डमान भेज दिया गया. इसके बाद उन्हें कोयम्बटूर और भखदा जेल भेजा गया. फिर उन्हें लाहौर जेल भेजा गया. इस दौरान उन्होंने एक लम्बे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया.
16 वर्ष जेल में बिताने के बाद भी अंग्रेज सरकार सोहन सिंह भकना जी को रिहा नही कर रहे थे. जिसके बाद सोहन सिंह भकना जी ने अनशन आरम्भ कर दिया. अनशन के कारण सोहन सिंह भकना जी का स्वास्थ्य बिगड़ गया. जिसके बाद अंग्रेज सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया. जेल से बाहर आने के बाद सोहन सिंह भकना जी ने 'कम्युनिस्ट पार्टी' का प्रचार शुरू कर दिया.
द्वितीय विश्व युद्ध के आंरभ में सरकार ने उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया. लेकिन सन 1943 में उन्हें रिहा कर दिया. जिसके बाद 20 दिसम्बर, 1968 को सोहन सिंह भकना जी का निधन हो गया. आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनकी पुण्यतिथि पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.