कुछ चाटुकार इतिहासकारों की अक्षम्य भूल के कारण विस्मृत कर दिए गए राजस्थानी सिंह व् मुग़ल सल्तनत की नींव हिला कर रख देने वाले महायोद्धा कल्ला जी राठौर के बलिदान दिवस पर सुदर्शन न्यूज़ की तरफ़ से भावभीनी व् अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
वीर योद्धा कल्ला जी राठौड़ का जन्म 1544 में राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता में हुआ था। वे मेड़ता रियासत के राव जयमल राठौड़ के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे। धर्म परायणता व् राष्ट्रभक्ति कल्ला जी राठौर की खानदानी विरासत थी।
जब सन् 1568 में अकबर की सेना ने चितौड़ पर कब्जा करने के लिए किले को लम्बे समय तक घेरा था तब किले के अंदर की सारी रसद समाप्त हो गई। उस समय सेनापति जयमल राठौड़ ने केसरिया बाना पहन कर शाका करने तथा क्षत्राणियों ने जौहर करने का निश्चय किया।
तत्पश्चात किले का दरवाजा खोल कर सनातनियों की सेना मुगलों पर टूट पड़ी। इस युद्ध में सेनापति जयमल राठौड़ पैरों में घाव होने से वो घायल हो गए। युद्ध लड़ने की तीव्र इच्छा के बावजूद उनसे उठा नहीं जा रहा था। यह देख कल्ला जी ने जयमल को अपने कंधों पर बैठा कर उनके दोनों हाथों में तलवार दे दी और खुद भी दोनों हाथों में तलवार लेकर अकबर की लुटेरी सेना से लड़ने लगे।
काल बन कर लड़ रहे वे दोनों अकबर के हत्यारे और लुटेरे सैनिकों की लाशों का ढेर लगाने लगे। इनसे डर कर दूर हाथी बैठे मुग़ल अकबर ने जब यह नजारा देख तो वह चकरा गया। उसने भारत के देवी देवताओं के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था। इस दृश्य से वह अचंभित हो गया।
उसने सोचा कि ये भी दो सिर और चार हाथों वाला कोई देवता है। मौक़ा देख कर कल्ला जी ने जयमल राठौर को नीचे जमीन पर उतारा एवं उनके पैरों से बहते ख़ून का इलाज करने लग गए। तभी एक धोखे, विश्वाश घात के लिए जानी जाने वाली मुग़ल सेना के एक सैनिक ने पीछे से वार कर उनका सिर काट दिया।
और इसी के साथ कल्ला जी राठौर आज अर्थात 24 फरवरी के दिन सदा सदा के लिए अमर हो गए। जब कभी कुछ चाटुकार इतिहासकारों की सीमित सोच से ऊपर कोई वास्तविक इतिहासकार सच्चा स्वदेशी इतिहास लिखेगा तो उसमें आतातायी, अत्याचारी, बर्बर, लुटेरे अकबर जैसे मुगलों से मातृभूमि बचाने वाले कल्ला जी राठौर जैसे योद्धा प्रथम पृष्ठ पर होंगे।
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