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Vijaya Ekadashi 2025: विजया एकादशी पर उपवास रहने से प्राप्त होता है विजय का आशीर्वाद, जानें व्रत की कथा और पूजन विधि

Vijaya Ekadashi Vrat Katha: विजया एकादशी व्रत की कथा: भगवान राम की सेना को कैसे मिली रावण पर विजय, जानें पूरी कहानी।

Ravi Rohan
  • Feb 24 2025 10:25AM

विजया एकादशी का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है, और इस दिन विशेष रूप से भक्तगण उपवास रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। हर साल यह पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जो इस साल 24 फरवरी को है।

विजया एकादशी का व्रत और उसकी विधि

इस दिन उपवास रखने वाले भक्तों को सभी धार्मिक नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। साथ ही, इस दिन की व्रत कथा का पाठ भी विशेष रूप से लाभकारी होता है। इसे ध्यान से सुनने और पढ़ने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

विजया एकादशी की कथा: त्रेता युग की अद्भुत घटना

त्रेता युग में भगवान श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए समुद्र को पार करने की योजना बना रहे थे। इसी समय, उन्होंने अपनी समस्या ऋषि वकदाल्भ्य के समक्ष रखी। ऋषि वकदाल्भ्य ने भगवान राम को कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उपवास रखने और व्रत करने की सलाह दी।

भगवान राम ने लक्ष्मण, हनुमान और अपनी समस्त वानर सेना के साथ उस दिन व्रत किया और पूरी विधि से पूजा की। इस पर एकादशी माता प्रसन्न हुईं और उन्होंने भगवान राम और उनकी सेना को दर्शन दिए, साथ ही उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद भी दिया।

विजया एकादशी का प्रभाव: भगवान राम की विजय

विजया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही भगवान राम और उनकी सेना को रावण के साथ युद्ध में विजय प्राप्त हुई। तभी से इस पवित्र व्रत की शुरुआत हुई, जो आज भी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

पूजन मंत्र

विजया एकादशी व्रत के दौरान इन विशेष पूजा मंत्रों का जाप भी किया जाता है, जो भक्तों को मानसिक शांति और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं:

1. शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।।
2. ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
3. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।

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