हर साल भारत में महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन का आयोजन घरों, मंदिरों, पूजा पंडालों और शिवालयों में भगवान शिव की पूजा के रूप में होता है। हालांकि, इस दिन की विशेष रौनक हरिद्वार और उज्जैन के महाकाल मंदिर में देखने को मिलती है, जहाँ भव्य शिव-पार्वती की बारात, झांकियां, जागरण और भजन कीर्तन होते हैं।
महाशिवरात्रि को लेकर एक पुरानी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से भक्त की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इस वर्ष, महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को मनाई जा रही है। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग बनेगा, जो शाम 5:23 तक रहेगा, साथ ही परिध योग का भी संयोग रहेगा।
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
शिवपुराण के अनुसार, फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की रात भगवान शिव अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के सामने प्रकट हुए थे। तभी आकाशवाणी हुई थी कि जो भक्त इस रात जागकर भगवान शिव के लिंग रूप की पूजा करेगा, उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
इसके अलावा, कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन शिव और पार्वती का विवाह भी हुआ था। शिवपुराण में वर्णन है कि शिव और पार्वती का विवाह मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था, जबकि माता सती और भगवान शिव का विवाह चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था।
'शिव' शब्द का अर्थ
शिव शब्द की उत्पत्ति 'वश कान्तौ' धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है "जो सभी को प्रिय है, जिसे सभी चाहते हैं, वही शिव है।" शिव का एक अन्य नाम 'शंकर' भी है, जहाँ 'शं' का अर्थ है आनंद और 'कर' का मतलब है करने वाला। यानी शंकर वह हैं जो आनंद प्रदान करते हैं।
शिवरात्रि की मान्यता और पूजा का महत्व
शिवरात्रि का व्रत विशेष रूप से रात के चारों प्रहरों में किया जाता है। इस रात जागकर भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। मान्यता है कि इस रात में भगवान शिव और माता पार्वती एक साथ भ्रमण करते हैं, और इस अवसर पर व्रत करने वाले भक्तों को इनकी कृपा प्राप्त होती है।