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7 नवंबर : जन्मजयंती स्वतंत्रता सेनानी बिपिन चंद्र पाल जी... जिन्हें कहा जाता है भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक

आज बिपिन चंद्र पाल जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Nov 7 2024 8:08AM

स्वतंत्रता संग्राम की लगाई में न जाने कितने ही ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. आज़ादी के ठेकेदारों और बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने न जाने कितने ही वीरों की गाथाओं को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे. बिपिन चंद्र पाल जी.भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकार अगर बिपिन चंद्र पाल जी का सच देश की नई पीढ़ी को दिखाते तो आज इतिहास काली स्याही के रंग में नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. आज बिपिन चंद्र पाल जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.

विपिन चंद्र पाल जी का जन्म 7 नवंबर 1858 को अविभाजित भारत के हबीबगंज जिले (अब बांग्लादेश ) में हुआ था. उनका जन्म एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम रामचंद्र और माता का नाम नारायणी देवी था. विपिन चंद्र पाल जी के पिता फारसी विद्वान और एक छोटे से जमींदार थे. विपिन चंद्र पाल जी की आरंभिक शिक्षा फारसी भाषा मे ही उनके घर पर हुई थी. जिसके बाद 1866 में उन्हें सिलहट शहर के एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में भेजा गया. इसके बाद विपिन चंद्र पाल जी ने दो मिशनरी विद्यालयों में पढ़ाई की. 1874 में विपिन चंद्र पाल जी ने सिलहट राजकीय उच्च विद्यालय से कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास की. 

अपने शिक्षा के दिनों में बिपिन चंद्र पाल जी ने काफी अध्ययन किया जिस कारण उनकी साहित्यिक रुचि और दक्षता बढ़ी. कुछ कारणों से बिपिन चंद्र पाल जी को ग्रेजुएट होने से पहले ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जिसके बाद उन्होंने कोलकाता के एक स्कूल में हेडमास्टर की तथा वहां की ही एक पब्लिक लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन की नौकरी की. बिपिन चंद्र पाल जी एक शिक्षक और पत्रकार होने के साथ-साथ एक कुशल वक्ता और लेखक भी थे. उन्होंने पत्रकारिता का काम करते हुए 'परिदर्शक' नामक साप्ताहिक में शुरू किया. जो सिलहट से निकलती थी. इसके साथ ही उन्होंने 'बंगाल पब्लिक ओपिनियन' में सहायक संपादक और वंदे मातरम्' पत्रिका के संस्थापक रह कर पत्रकारिता में योगदान दिया. 

बिपिन चंद्र पाल जी शिक्षक, पत्रकार और लेखक के साथ ही एक बड़े समाज सुधारक भी थे. सार्वजनिक जीवन के साथ ही वो निजी जीवन में भी अपने विचारों पर अमल करने वाले व्यक्ति थे. वह समाज में स्थापित दकियानूसी मान्यताओं के खिलाफ थे. बिपिन चंद्र पाल जी ने परिवार के विरोध के बावज़ूद एक विधवा से विवाह किया था, जो उस समय दुर्लभ बात थी. इसी के चलते  उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा था. लेकिन दबावों के बावजूद भी उन्होंने अपने विचारों  के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया. यहां तक कि बिपिन चंद्र पाल जी ने गांधी के कुछ विचारों से असहमत होने पर उनका भी विरोध किया था. 

इतिहासकार वी. सी. साहू के अनुसार विपिन चन्द्र कांग्रेस के क्रान्तिकारी देशभक्तों लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल (लाल बाल पाल) की तिकड़ी का हिस्सा थे, जिन्होंने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया था. बाल गंगाधर तिलक की गिरफ़्तारी और 1907 में ब्रितानिया हुकूमत द्वारा चलाए गए दमन के समय पाल इंग्लैंण्ड गए. वह वहाँ क्रान्तिकारी विधार धारा वाले 'इंडिया हाउस' से जुड़ गए और 'स्वराज पत्रिका' की शुरुआत की. मदन लाल ढींगरा के द्वारा 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दिये जाने के कारण उनकी इस पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया और लंदन में उन्हें काफ़ी मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा. इस घटना के बाद वह उग्र विचारधारा से अलग हो गए और स्वतंत्र देशों के संघ की परिकल्पना पेश की। पाल ने कई मौक़ों पर महात्मा गांधी की आलोचना भी की. 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पाल ने अध्यक्षीय भाषण में गांधीजी की आलोचना करते हुए कहा था-आप जादू चाहते हैं, लेकिन मैं तर्क में विश्वास करता हूँ. आप मंत्रम चाहते हैं, लेकिन मैं कोई ­ऋषि नहीं हूँ और मंत्रम नहीं दे सकता. 

वंदे मातरम् राजद्रोह मामले में भी अरबिंदो घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने से इंकार करने के कारण वह छह महीने जेल में रहे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में पाल की जन्मशती के मौक़े पर अपने सम्बोधन में उन्हें एक ऐसा महान् व्यक्तित्व क़रार दिया, जिसने धार्मिक और राजनीतिक मोर्चों पर उच्चस्तरीय भूमिका निभाई. पाल ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान विदेशी कपड़ों की होली जलाने और हड़ताल जैसे आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई.

विपिन चन्द्र पाल 1922 में राजनीतिक जीवन से अलग हो गए और 20 मई, 1932 में अपने निधन तक राजनीति से अलग ही रहे. आज विपिन चंद्र पाल जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.

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