राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस खारिज कर दिया गया है। उप सभापति ने उपराष्ट्रपति के खिलाफ दर्ज इस प्रस्ताव को खारिज कर दिए है। दरअसल, अनुच्छेद 67(बी) का उपयोग करके उपराष्ट्रपति को हटाने पर विचार करने के लिए किसी भी प्रस्ताव के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस की आवश्यकता होती है, जिसका पालन नहीं किया गया। इसलिए, विपक्ष के प्रस्ताव को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया।
अविश्वास प्रस्ताव में कई खामियां
इसको लेकर उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि यह अविश्वास प्रस्ताव देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ एक नैरेटिव बनाने के उद्देश्य से लाया गया है। उन्होंने कहा कि उस प्रस्ताव में उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ का नाम भी ठीक से नहीं लिखा गया था। कहा जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव में दस्तावेजों और वीडियो का जिक्र नहीं किया गया। उपसभापति ने कहा, "संसद और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के लिए चिंता की बात यह है कि यह नोटिस वर्तमान उपराष्ट्रपति को बदनाम करने वाले दावों से भरा है, जिसमें अगस्त 2022 में उनके पदभार ग्रहण करने के समय घटित घटनाओं का जिक्र है। नोटिस में प्रामाणिकता की कमी और बाद में सामने आई घटनाओं से पता चला कि यह राजनीतिक प्रचार को चमकाने का एक प्रयास था।"
14 दिन पूर्व नोटिस देना अनिवार्य
इस दौरान उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने 2020 के तत्कालीन सभापति वेंकैया नायडू का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "वेंकैया नायडू ने अनुच्छेद 67 (बी) के प्रावधानों के तहत प्रक्रियाओं का पालन नहीं करने के लिए अध्यक्ष के इसी तरह के निष्कासन नोटिस को खारिज कर दिया था।" उपसभापति ने कहा, "संविधान के प्रावधानों, राज्यसभा के नियमों और पिछली कार्यवाही का अध्ययन करने के बाद मैंने पाया कि यह अविश्वास प्रस्ताव सही प्रारूप में नहीं है। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 90 (सी) के प्रावधानों के अनुसार, प्रस्ताव पेश करने के लिए 14 दिनों की नोटिस अवधि की आवश्यकता होती है।"