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13 अक्टूबर: जन्मजयंती स्वतंत्रता सेनानी भूलाभाई देसाई जी... जिन्होंने अपने वकालत के बल पर खोदी थी अंग्रेजों की कब्र

आज स्वतंत्रता सेनानी भूलाभाई देसाई जी के पावन जन्म दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारम्बार नमन , वंदन और अभिनन्दन करता है

Sumant Kashyap
  • Oct 13 2024 8:30AM

स्वतंत्रता संग्राम में कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया. ऐसा ही एक नाम है वरिष्ठ वकील और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भूलाभाई देसाई  जी का. कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में नौकरशाही उनसे सदा आतंकित रहती थी. 'आज़ाद हिंद फौज' पर राजद्रोह के मुकदमें में सैनिकों का पक्ष-समर्थन भूलाभाई देसाई जी ने जिस कुशलता तथा योग्यता से किया था, उससे उनकी कीर्ति देश में ही नहीं, विदेश में भी फैल गई थी. वहीं, आज उनके पावन जन्म दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारम्बार नमन, वंदन और अभिनन्दन करता है.

भूलाभाई देसाई जी का जन्म 13 अक्टूबर 1877 को गुजरात के वलसाड़ शहर में हुआ था. बता दें कि आरम्भ में उनके मामा ने ही उन्हें पढाया. उसके बाद उन्होंने वलसाड़ के अवाबाई स्कूल और फिर बॉम्बे के भरदा हाई स्कूल से शिक्षा ग्रहण की. सन 1895 में उन्होंने भरदा हाई स्कूल से ही मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की. इस परीक्षा में वे अपने स्कूल में प्रथम स्थान पर रहे. जब वे स्कूल में थे तब उनका विवाह इच्छाबेन से करा दिया गया. उनकी पत्नी ने एक पुत्र धीरुभाई को जन्म दिया पर सन् 1923 में कैंसर से इच्छाबेन की मृत्यु हो गयी. इसके पश्चात भूलाभाई देसाई जी ने बॉम्बे के एल्फिन्सटन कॉलेज में दाखिला लिया जहां से उन्होंने उच्च अंकों के साथ अंग्रेजी साहित्य और इतिहास में स्नातक किया.

इतिहास और राजनैतिक अर्थव्यवस्था विषयों में प्रथम आने पर उन्हें वर्ड्सवर्थ पुरस्कार और एक छात्रवृत्ति प्राप्त हुई. इसके पश्चात भूलाभाई देसाई जी ने अंग्रेजी साहित्य विषय में स्नातकोत्तर किया. स्नातकोत्तर के बाद उन्हें गुजरात कॉलेज में अंग्रेजी और इतिहास का प्रोफेसर नियुक्त किया गया. अध्यापन के दौरान उन्होंने कानून की पढ़ाई की और बॉम्बे उच्च न्यायालय में वकालत के लिए पंजीकरण कराया और धीरे-धीरे वे बॉम्बे और फिर बाद में देश के अग्रणी विधिवेत्ताओं में गिने जाने लगे. भूलाभाई देसाई जी एक प्रसिद्ध स्वाधीनता कर्मी और अपने समय के जाने-माने अधिवक्ता थे.

उन्होंने आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर लगे राजद्रोह के मुकदमें में उनका पक्षसमर्थन बहुत कुशलता से किया, जिससे उनकी कीर्ति सम्पूर्ण देश में फैल गई. भूलाभाई देसाई जी का संबंध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ तब शुरू हुआ जब उन्होंने 1928 में बारडोली सत्याग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई जांच में गुजरात के किसानों का प्रतिनिधित्व किया. यह सत्याग्रह अकाल के समय में दमनकारी कराधान नीतियों के विरोध में गुजरात के किसानों द्वारा चलाया गया एक अभियान था. बता दें कि इसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल जी और भूलाभाई देसाई जी ने किसानों के मामले का दृढ़तापूर्वक प्रतिनिधित्व किया, और संघर्ष की अंतिम सफलता के लिए महत्वपूर्ण थे.

वहीं, 1930 में भूलाभाई देसाई जी औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हो गए. विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रभावशीलता के बारे में आश्वस्त होकर, उन्होंने स्वदेशी सभा का गठन किया और भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्माण करने के उद्देश्य से 80 कपड़ा मिलों को इसमें शामिल होने के लिए राजी किया. इस सभा को अवैध घोषित कर दिया गया और उनकी गतिविधियों के लिए उन्हें 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में रहते हुए भूलाभाई देसाई जी लगातार बीमार रहने लगे. स्वास्थ्य कारणों से रिहा होने पर, वह इलाज के लिए यूरोप गए. जब कांग्रेस कार्य समिति का पुनर्गठन किया गया तो सरदार वल्लभभाई पटेल जी के आग्रह पर भूलाभाई देसाई जी को समिति में शामिल किया गया.

नवंबर 1934 में, भूलाभाई देसाई जी गुजरात से केंद्रीय विधान सभा के लिए चुने गए . भारत सरकार अधिनियम 1935 (जिसने प्रांतीय स्वायत्तता की अनुमति दी) ने यह सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस को विधानमंडलों में भाग लेना चाहिए. अन्य लोगों के अलावा भूलाभाई देसाई जी ने भारतीयों को दी गई अधिक स्वायत्तता और राजनीतिक अधिकारों की ओर इशारा करते हुए कांग्रेस की भागीदारी का समर्थन किया. जब कांग्रेस ने केंद्रीय विधानसभा में प्रवेश किया, तो उन्हें सभी निर्वाचित कांग्रेसियों का नेता चुना गया, इस प्रकार वे बहुमत के नेता बने. उन्होंने कांग्रेस के पहले निर्वाचित प्रतिनिधित्व का सशक्त नेतृत्व करके बहुत सम्मान और प्रतिष्ठा पैदा की.

द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में , कांग्रेस ने अंग्रेजों द्वारा युद्ध प्रयासों में भारत और भारतीय सैनिकों को मनमाने ढंग से शामिल करने का विरोध किया. भूलाभाई देसाई जी ने कांग्रेस के रवैये को दुनिया के सामने स्पष्ट करने के लिए केंद्रीय विधानसभा का उपयोग करना महत्वपूर्ण समझा. भूलाभाई देसाई जी ने 19 नवंबर 1940 को सदन को संबोधित करते हुए जोरदार दलील दी, जिसमें लिखा था, "...जब तक यह भारत का युद्ध नहीं है, यह असंभव है कि आपको भारत का समर्थन मिलेगा." सत्याग्रह में भाग लेने पर , उन्हें 10 दिसंबर को भारत रक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था और यरवदा सेंट्रल जेल भेज दिया गया . सितंबर 1941 में उन्हें खराब स्वास्थ्य के आधार पर जेल से रिहा कर दिया गया, जिसका असर भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भागीदारी पर भी पड़ा. वहीं, आज उनके पावन जन्म दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारम्बार नमन , वंदन और अभिनन्दन करता है.

 

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