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14 अक्टूबर: बलिदान दिवस क्रांति पुत्री दुर्गा भाभी जी... हैली और टेलर जैसे क्रूर ब्रिटिश घुसपैठियों को मारी थी गोली

आज उस क्रांति पुत्री को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सुदर्शन न्यूज सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.

Sumant Kashyap
  • Oct 14 2024 10:02AM
भारत की वो नारी शक्ति जिनको कभी ठीक से जानने ही नहीं दिया गया, वो वीरांगना जो सबके सामने होते हुए भी गुमनाम रखी गईं और नकली कलमकार उतना समय होने की प्रतीक्षा करते रहे जिसके बाद वो इनकी गौरवगाथा को भगवान श्रीराम के जीवन की तरह अदालत में काल्पनिक बताने लगें. आज उस क्रांति पुत्री को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सुदर्शन न्यूज सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है. 

राष्ट्र के बौद्धिक आतंकियों की साजिश की शिकार रहीं ये नारी शक्ति जिनको गुमनाम रखने के बाद भी वो अपने कृत्य में सफल नहीं हुई. आज क्रन्तिपुत्री दुर्गा भाभी के बलिदान दिवस राष्ट्र को विदित है. भारत को एक बहुत लंबे संघर्ष के बाद आजादी मिली थी. पर इस आजादी को दिलाने के लिए अपने प्राणों तक की आहुति देनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों को आज हम भूलते जा रहे हैं. खासकर, उन महिला स्वतंत्रता सेनानीओं को, जिन्होंने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर देश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई थी. ऐसी ही एक भूली-बिसरी कहानी है दुर्गा देवी वोहरा की.

इन्ही को हम दुर्गा भाभी जी के नाम से जानते हैं. दुर्गा भाभी जी ने गुमनामी की ज़िन्दगी जीकर भी, देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान न केवल महत्वपूर्ण गतिविधियों को अंजाम दिया बल्कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन पर भी इनका गहरा प्रभाव रहा. बचपन से ही अंग्रेजों के अत्याचारों को देखकर बड़े हुई भगवती 1920 के दशक में सत्याग्रह के आन्दोलन से जुड़ गई. लाहौर के नेशनल कॉलेज के छात्र के रूप में उन्होंने भगत सिंह, सुखदेव और यशपाल के साथ मिलकर एक स्टडी सर्कल की शुरुआत की, जो दुनिया भर में होने वाले क्रांतिकारी आंदोलनों के बारें में जानने-समझने के लिए बनाया गया था.

दुर्गा भाभी जी का जन्म 7 अक्टूबर 1902 को शहजादपुर ग्राम अब कौशाम्बी जिला में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ. इनके पिता प्रयागराज कलेक्ट्रेट में नाजिर थे और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे. इनके दादा पं॰ शिवशंकर शहजादपुर में जमींदार थे जिन्होंने बचपन से ही दुर्गा भाभी की सभी बातों को पूर्ण करते थे. दस वर्ष की अल्प आयु में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया था. इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे.

मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह जी ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की. सैकड़ों नौजवानों ने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान वेदी पर चढ़ाने की शपथ ली. भगत सिंह जी व भगवती चरण वोहरा सहित सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए। 28 मई 1930 को रावी नदी के तट पर साथियों के साथ बम बनाने के बाद परीक्षण करते समय इनके पति वोहरा जी अमरता को प्राप्त हो गये.

पति का बलिदान इनके हौसलों को जरा सा भी नहीं डिगा पाया और ये अपने कार्यो में ज्यों की त्यों लगी रहीं. 9 अक्टूबर 1930 को दुर्गा भाभी जी ने गवर्नर हैली पर गोली चला दी थी जिसमें गवर्नर हैली तो बच गया लेकिन सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया. मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी जी ने गोली मारी थी जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज पुलिस इनके पीछे पड़ गई. मुंबई के एक फ्लैट से दुर्गा भाभी जी व साथी यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया. दुर्गा भाभी जी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था.

अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद जी ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी उसे दुर्गा भाभी जी ने ही लाकर उनको दी थी. उस समय भी दुर्गा भाभी उनके साथ ही थीं. उन्होंने पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग लाहौर व कानपुर में ली थी. भगत सिंह जी व बटुकेश्वर दत्त जी जब केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने जाने लगे तो दुर्गा भाभी जी व सुशीला मोहन ने अपनी बांहें काट कर अपने रक्त से दोनों लोगों को तिलक लगाकर विदा किया था. असेंबली में बम फेंकने के बाद इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा फांसी दे दी गई.

साथियों के बलिदान होने के बाद दुर्गा भाभी जी अकेले ही क्रांतिकारियों की नई पौध तैयार करने लगीं. वो शिक्षा देने के बहाने बच्चो को क्रन्तिकारी बनने की शिक्षा देती रहीं. उसको पुलिस लगातार परेशान करती रही, अफ़सोस की बात ये है की उन पुलिस वालों में ज्यादातर भारतीय थे जो मात्र वेतन और मेडल के लिए नौकरी कर रहे थे. 14 अक्टूबर 1999 को गाजियाबाद में उन्होंने सबसे नाता तोड़ते हुए इस दुनिया से अलविदा कर लिया. आज उस क्रांति पुत्री को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सुदर्शन न्यूज सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.

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