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25 अक्टूबर: समाधि दिवस पर नमन है महान संत, दैवी विभूती श्री ज्ञानेश्वर महाराज जी... जिन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में श्रीमद्भगवतगीता पर भाष्य कर 'ज्ञानेश्वरी' की रचना की

समाधि दिवस पर सुदर्शन न्यूज उन्हें बारम्बार नमन , वंदन और अभिनंदन करता है

Sumant Kashyap
  • Oct 25 2024 9:46AM
संत ज्ञानदेव का भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान है, और उन्हें महान संतों में गिना जाता है। उनके जीवन और उनके योगदान को समझना हमें उनकी महानता को करीब से देखने का अवसर देता है।

ज्ञानेश्वर, जिनका जन्म 13वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में हुआ था, एक प्रमुख वैष्णव संत के रूप में पहचाने जाते हैं। भगवद गीता पर उनकी व्याख्या, जिसे "ज्ञानेश्वरी" के नाम से जाना जाता है, उन्हें विशेष ख्याति दिलाती है। इस ग्रंथ को हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण रचना माना जाता है और भारतीय धार्मिक साहित्य में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त है। इसके अलावा, उन्होंने याज्ञवल्क्य स्मृति सहित कई अन्य धार्मिक ग्रंथों का भी सृजन किया।

उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उनके ज्ञान और मार्गदर्शन को समझने के लिए, हमें उनकी शिक्षा का गहराई से अवलोकन करना चाहिए, जिसमें उन्होंने प्रेम, जीवन और आध्यात्मिकता के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला।

ज्ञानेश्वर का बचपन आध्यात्मिक खोज के प्रति समर्पित था। बाल्यावस्था में ही उन्होंने सांसारिक मोह से दूरी बनाकर अद्वैत वेदांत के विद्वान श्री गणेश उपाध्याय से शिक्षा ग्रहण की। भगवद गीता पर उनका विस्तृत और गहन विश्लेषण उन्हें एक महान संत और दार्शनिक के रूप में स्थापित करता है।

उनकी शिक्षाओं ने भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। संत ज्ञानेश्वर का मानना था कि आत्म-साक्षात्कार ही जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए और इसे ध्यान और साधना के माध्यम से पाया जा सकता है। उनकी कविताएँ मराठी साहित्य में अतुलनीय मानी जाती हैं, और उनका प्रभाव भारतीय समाज और संस्कृति में आज भी महसूस किया जा सकता है।

उनकी आध्यात्मिक साधना, मराठी भाषा पर उनकी गहरी पकड़, और उनके द्वारा समाज के प्रति किया गया सेवा कार्य उन्हें विशिष्ट बनाता है। वारकरी संप्रदाय, जो महाराष्ट्र का एक प्रमुख आध्यात्मिक संप्रदाय है, पर भी उनका गहरा प्रभाव रहा है। भारतीय आध्यात्मिकता के क्षेत्र में ज्ञानदेव की रचनाएँ सदैव प्रेरणा देती रहेंगी।

ज्ञानेश्वर द्वारा रचित "अष्टादश शिव हिकारी" उनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य रचना है, जिसमें 18,000 छंदों के माध्यम से शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। यह रचना आज भी भक्तों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।

संत ज्ञानेश्वर का दर्शन "ज्ञान" और आत्म-साक्षात्कार पर आधारित था। उनके अनुसार, अध्यात्मिकता की राह अंतर्ज्ञान और आत्म-विश्लेषण से होकर गुजरती है। उनकी शिक्षाएँ आज भी अनगिनत लोगों को मार्गदर्शन देती हैं और उन्हें प्रेरित करती हैं।

उनके विचारों की गहराई, आध्यात्मिकता की समझ और ज्ञान का बोध उन्हें एक महान संत के रूप में स्थापित करता है, और उनके विचार आज भी लोगों के हृदय में जीवित हैं।
 

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