आज तमाम चाटुकार इतिहासकार व कई नकली कलमकारों की साजिश के शिकार उस परम बलिदानी हेमू कालानी जी को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है.
फ्रीडम फाइटर अर्थात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनना इतना भी आसान नही.. इसका वास्तविकता भी सिर्फ किताबो में अपना नाम लिखवाना नहीं है.. इसके लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है, सब कुछ त्यागना पड़ता है.. इसके लिए चाहिए निर्भीकता, निडरता और साहस जो सब में नही होता..
उन तमाम निडर, निर्भीक योद्धाओं में से ही एक थे वीर बलिदानी हेमू कालानी जी..शौर्य, शक्ति व सम्मान के अद्भुत प्रतीक हेमू कालानी जी का आज बलिदान दिवस है जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और जब ब्रिटिश शासन ने उनके सामने 2 रास्ते रखे- एक क्रान्तिकारियों की मुखबिरी और दुसरा मौत. तो उन्होंने खुद से ही आगे बढ़कर फांसी का फंदा चूम लिया था और करोड़ों सच्चे देशभक्तों के दिलों में सदा सदा के लिए बस गए.
देश के लिए बलिदान होने वाले हेमू कालानी जी का आज बलिदान दिवस है ! जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता से माफ़ी या समझौते की बजाय बलिदान का रास्ता चुना ! वे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़कर सदा के लिए अजर-अमर हो गए ! ऐसे वीर बलिदानी हेमू कालानी जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगान सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.
हेमू कालानी जी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सख्खर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था. उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था. हेमू जी किशोरवय में ही अपने साथियों के साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे.
ये संग्राम बिना खड्ग बिना ढाल वाला कदापि नहीं था बल्कि इस मे जान लेने व जान देने, दोनों का खतरा था.. सन् 1942 में हेमू कालानी जी को यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना की हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. तो हेमू कालाणी जी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बना ली.
वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से हो रहा था पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उन पर पड़ गई. वहां उपस्थित बाकी क्रान्तिकारी वहां से निकलने में कामयाब रहे लेकिन पुलिस कर्मियों ने हेमू कालाणी जी को गिरफ्तार कर लिया. जिसके बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.
उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की. वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि यदि हेमू जी अपने साथियों का नाम और पता बता दें तो उनकी सजा मांफ हो जाएगी. हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी.
आज ही के दिन अर्थात 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दे दी गई. जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय वन्देमातरम की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार कर लिया.
आज तमाम चाटुकार इतिहासकार व कई नकली कलमकारों की साजिश के शिकार उस परम बलिदानी हेमू कालानी जी को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारंबार नमन और वंदन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है और साथ ही सवाल करता है भारत के उन तथाकथित भाग्य विधाताओं से की उन्होंने ऐसे वीर बलिदानी को इतिहास में उचित स्थान व योग्य सम्मान क्यों और किस के इशारे पर नहीं दिया ?