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19 अक्टूबर: बलिदान दिवस महान राष्ट्रभक्त डॉ. नारायण दामोदर सावरकर जी... जिन्होंने भारतीय संस्कृति और अपने बड़े भाई वीर सावरकर जी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया

आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन

Sumant Kashyap
  • Oct 19 2024 8:12AM

आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारे में नही बताया होगा , बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने तो दूर, सदा के लिए मिटाने की कोशिश की है, आज उन लाखों सशस्त्र क्रांतिवीरों में से एक नारायण दामोदर सावरकर जी की पुण्‍यतिथि है. जिसे शायद ही उस परिवार में से कोई जानता होगा जिसके हिसाब से हर बलिदान उसी के परिवार के आसपास घूमता है. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है. 

बता दें कि, नारायण दामोदर सावरकर जी का जन्म 25 मई 1888 को हुआ था. नारायण दामोदर सावरकर जी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर जी के छोटे भाई थे. ये व्यवसाय से दन्त-चिकित्सक थे. इन्होंने अपने दोनों बड़े भ्राताओं को जेल से छुड़ाने के लिए अथक प्रयास किए. ये नासिक में क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय रहे. इन्होंने स्वामी श्रद्धानंद जी की स्मृति में श्रद्धानन्द साप्ताहिक का तीन वर्षों तक प्रकाशन किया. बता दें कि माता-पिता का छत्र दुर्भाग्य से शीघ्र छिन जानेपर उनका पालन-पोषण उनके बडे भाई गणेशपंत जी तथा बाबाराव जी एवं उनकी पत्नी श्रीमती येसूवहिनी ने किया. वहीं,  नारायण दामोदर सावरकर जी 19 अक्टूबर, 1949 को बलिदान हो गए थे. 

वहीं, विख्यात लेखक तथा चरित्रकार द.न. गोखले क्रांतिवीर बाबाराव सावरकर जी इस चरित्र ग्रंथ में लिखते हैं, अनाथ नवजात शिशु नारायणराव जी को माता की ममता एवं पिता का स्नेह देकर बाबाने उनका पालन-पोषण किया. अपने तात्या के समान यह बालक भी देशभक्त हो, इस हेतु वे नारायणराव जी का अध्ययन बहुत आशा से करवा रहे थे. उनकी यह आशा नारायणरावने अंगे्रजी की तीसरी कक्षा में जाते ही पूर्ण करना प्रारंभ कर दिया. बाबा-तात्या से जो स्फूर्ति मिली उसके बलपर उन्होंने 'मित्रसमाज' विद्यार्थी संगठन की का विस्तार किया तथा उन्होंने अपने सामर्थ से अपने बलपर इस क्रांति दल में कितने ही नवयुवक ला खडे कर दिए. अपने उत्साहपूर्ण भाषण से वे विद्यार्थी जीवन में ही नवयुवकों के प्रेम तथा वयोवृद्धों की प्रशंसा के पात्र बन गए .

बता दें कि  मैट्रिक के पश्चात 1908 में वे उच्च शिक्षा के लिए बडोदा गए तथा उन्होंने वहां `अभिनव भारत’की शाखा स्थापित की. इस शाखाके लगभग दो सौ नवयुवकोंने शपथ ली. बडोदाका संगठनकार्य नारायण दामोदर सावरकर जी ने`मित्रसमाज’की भांति चहूओर फैलाया. उस समय उन्होंने पढाई के साथ ही माणिकरावकी व्यायामशालामें कुश्ती, मल्लखंब, लाठी इत्यादि का उत्तम ढंग से प्रशिक्षण प्राप्त किया.

बताया जा रहा है कि नारायण दामोदर सावरकर जी जब छुट्टी में नाशिक आते, तब वहां के बच्चों से इस विद्या का आदान-प्रदान होता था. नाशिक के इस प्रशिक्षण में सैनिक संचालन, निशानेबाजी तथा दीवारपर चढने की कला सिखाई जाती थी. यहां `मित्रसमाज’ ही अन्यत्र उल्लेखित `मित्रमेला’. मित्रमेला की साप्ताहिक सभाएं होती तथा उसमें देश विषयक अलग- अलग पुस्तकों की चर्चा की जाती थी. सभा में स्फूर्तिप्रद विचार रखे जाते थे .

1899 से 1908-9 तक नाशिक में क्रांतिकार्य चरम सीमापर था. इस क्रांतिकार्य के फलस्वरूप केवल 18 वर्ष की आयु में इतिहास प्रसिद्ध `नाशिक षडयंत्र’ अभियोग में नारायण दामोदर सावरकर जी को छः महीने का दंड दिया गया. 21 नवम्बर 1909 को बाबाराव जी को आजीवन कारावास दिया गया. उसके पहले कर्णावती में हुए बमविस्फोट कांड में नारायणराव जी भी पकडे गए थे . लंदन में विनायकराव जी पर भी ब्रिटिश शासन की वक्रदृष्टि थी. पुलिस की मार सहकर भी वे अंत में बिना किसी प्रमाण के निर्दोष छूट गए. 18 दिसंबर 1909 को वे घर आए ही थे, कि 21 दिसम्बर को नाशिक में अनंत कान्हेरेने जेक्सन की हत्या कर दी. उसी रात नारायणराव जी पकड लिए गए तथा पुनः छल यातना के चक्र में फंसा दिए गए.

नारायण दामोदर सावरकर जी  को 21  जून 1911 को छूट ने पर उन्हें किसी भी महाविद्यालय में प्रवेश नहीं मिल रहा था. अंत में कोलकाता के 'नेशनल मेडिकल महाविद्यालय में' उन्हें प्रवेश मिल गया. आर्थिक बाधाएं, शासकीय गुप्त पुलिसों का पीछा, पुनः होनेवाली पूछताछ का सामना करते हुए 1916 में नारायण दामोदर सावरकर जी `ऐलोपेथी' तथा 'होमियोपेथी' दोनों विषयों की उपाधि प्राप्त की. `दंतचिकित्सा’में भी उन्होंने उपाधि प्राप्त की. इन दिनों अध्ययन के व्यय के लिए उन्होंने बीच-बीच में व्यापारी के पास लेखापाल का काम भी किया. पढते समय मैडम कामाद्वारा फ्रांस से भेजी गई आर्थिक सहायता की तुलना किसी से नहीं की जा सकती !

कोलकाता में उन्हीं दिनों नारायण दामोदर सावरकर जी तथा डॉ. हेडगेवार जी में मित्रता हो गई. उन दिनों तीन-चार मित्रों का एक समूह बन गया था. आर्थिक बाधा तो सदा की थी ही . भोजनालय से दो व्यक्तियों का भोजन मंगाना तथा चार व्यक्तियोंने बांटकर खाना, ऐसे ही चल रहा था. वह भी पूरा नहीं पडता. `जो भोजन आप भेजते हैं वह पूरा नहीं पडता है ऐसी शिकायत करनेपर भोजन देनेवाले से थोडा वाद-विवाद हुआ; परंतु उसने कहा, “तुम लोगों में से कोई एक यहां एक दिन आकर खाए. वह जितना खाएगा उतना मैं भेज दिया करूंगा.”

निवासगृह आनेपर विचार-विमर्श के पश्चात निर्णय किया गया कि डॉ. हेडगेवार जी खाने के लिए जाएं. हेडगेवार जी खाना खाने गए तथा उन्होंने बाईस-चौबीस रोटियां खाईं ! भोजनालयवाला देख रहा था. उसकी वृति एक दानी जैसी थी. उसने अपना वचन निभाया. वह प्रतिदिन उतनी रोटिया भेजने लगा तथा चारों की अच्छी उदरपूर्ति होने लगी. बता दें कि  जिनकी कांग्रेस के गुंडों ने मॉब लिंचिंग कर हत्या की थी. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.

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