भारत सरकार ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के तहत नई डीप टेक और कटींग-एज नीतियों को मंजूरी दे दी है। इन नीतियों का उद्देश्य DRDO प्रतिष्ठानों को निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ सहयोग करने के लिए प्रेरित करना है, ताकि उभरती तकनीकों के विकास में साझेदारी बढ़ाई जा सके। इसके अलावा, निजी कंपनियों को विशेष तकनीकों के विकास के लिए अनुदान भी दिया जा रहा है।
DRDO की प्रयोगशालाओं में संरचित अनुसंधान रोडमैप तैयार किए गए हैं, जिनका उद्देश्य वैश्विक रक्षा तकनीकों और उत्पादों के साथ तालमेल बनाए रखना है। DRDO हर दो महीने में एक दस्तावेज़ तैयार करता है, जिसमें दुनिया भर में विकसित नई तकनीकों और प्रणालियों की समीक्षा की जाती है।
वैश्विक दृष्टिकोण से तकनीकी विकास को ट्रैक करने के लिए प्राधिकृत ढांचों का उपयोग किया जाता है और सार्वजनिक डोमेन में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों सहित तकनीकी विकास की सक्रिय रूप से निगरानी की जाती है। DRDO अपने वैज्ञानिकों को अंतरराष्ट्रीय रक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधित विभिन्न डेटाबेस का ऑनलाइन एक्सेस भी प्रदान करता है।
अकादमिक, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच तालमेल
DRDO का उद्देश्य अकादमिक अनुसंधान को औद्योगिक अनुप्रयोगों में बदलने के लिए उद्योग और अकादमिक संस्थानों के बीच समन्वय बढ़ाना है। इसमें स्टार्टअप्स, MSMEs, और बड़े उद्योगों की अहम भूमिका है।
DIA-CoEs के माध्यम से तकनीकी विकास
इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए DRDO ने 15 "डीआरडीओ इंडस्ट्री अकादमिक सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस" (DIA-CoEs) स्थापित किए हैं, जो देश के प्रमुख संस्थानों जैसे IITs, IISc और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्थित हैं। ये केंद्र सामरिक और भविष्यवाणी की तकनीकों के विकास के लिए दिशा-निर्देशित अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं।
हर DIA-CoE को 84 पहचाने गए अनुसंधान क्षेत्रों में विशेष तकनीकी विकास पर ध्यान केंद्रित करने का कार्य सौंपा गया है। इसके साथ ही, उद्योग और अकादमिक संस्थानों के बीच तालमेल को सरल बनाने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) भी तैयार की गई है। यह जानकारी आज लोकसभा में रक्षा राज्य मंत्री श्री संजय सेठ द्वारा साक्षात्कार के दौरान दी गई।